चित्रकूट जहां श्री राम अपनी पत्नी सीता जी और भाई लक्ष्मण के साथ कामदगिरि पर्वत पर लगभग साढ़े 11 वर्ष तक वनवास काल रहे थे और वहीं पर श्री राम का नाम कामतानाथ है। कामदगिरि के आसपास के क्षेत्र में चार कामतानाथ मंदिर हैं। वे अलग-अलग दिशाओं में हैं। चित्रकूट में राम घाट/ तुलसी घाट है जहां तुलसी दास चंदन की लकड़ी से तिलक बना रहे थे और श्री राम ने तिलक के लिए तुलसी दास से चंदन लिया था. यहाँ पर बहने वाली नदी का नाम मन्दाकिनी गंगा है. इसमें नाव तैरती रहती हैं. जिसमे लोग भ्रमण करते हैं.
दोहा बहुत प्रसिद्ध है
चित्रकूट के घाट पर भयि संतन की भीर
तुलसी दास चंदन घिसन तिलक करें रघुबीर
लखनऊ से चित्रकूट जाने के लिए एक ट्रेन है लखनऊ चित्रकूट जबलपुर एक्सप्रेस . ये शाम को 5 बजे लखनऊ से चलकर रात 11:30 के बाद चित्रकूट आधी रात को पहुँचती है. आपको यह समय बहुत अटपटा सा लगता है. क्या करें आधी रात को. तुलसी घाट और कामता नाथ मंदिर यहाँ से 10 से 12 किलोमीटर दूर है. स्ट्रेटेशन के पास कुछ होटल हैं. ट्रेन पंहुंचने पर कुछ ऑटो वाले आ जाते हैं. इन्हीं में बैठ कर आप चले गए तो ठीक वर्ना फिर औटो मिलना मुश्किल होता है. स्टेशन से तुलसी घाट तक रोड अच्छी है. लाइट की पूरी सुविधा है. आपको यहाँ आने से पहले ही अपना होटल या धर्मशाला बुक करवा लेना चाहिए. हम (पति पत्नी) और एक और फॅमिली (पति पत्नी) कुल 4 लोगों ने मिलकर रात में 150 रु में ई रिक्शा करके अपने होटल तक 12 किमी गए. दूसरी फॅमिली तुलसी घाट/राम घाट चौराहे पर उतर कर कामता नाथ मंदिर के पास के किसी होटल में चले गए. रात में ऑटो ई रिक्शा मिल गए थे. 2-4 ई रिक्शा खड़े थे. पंहुचने का समय अटपटा होने से लखनऊ से लोग कम ही चित्रकूट और खजुराहो जाते हैं. अगर आप दिन में स्टेशन से राम घाट आते हैं तो टेम्पो में 20 रु सवारी के हिसाब से आ सकते हैं. पूरा ई रिक्शा 80 से 100 रु में बुक कर सकते हैं. पिछड़ा क्षेत्र होने से चीजों के दाम ज्यादा नहीं हैं लेकिन हर जगह कुछ मोल भाव कर सकते हैं.
हमने तुलसी घाट के आगे 1.5 किमी दूर पारवती होटल बुक कराया था Rs 800 प्रतिदिन (गीजर सुविधा वाला) सर्दी का मौसम 24 फरवरी २०२४ का समय था. रात में पंहुचने पर दरवाजा खोलकर हमें हमारा कमरा दे दिया था. लोग उस होटल में कम ही थे. उस समय इम्तिहान का समय चल रहा था अत: भीड़ भी हर जगह कम थी. अमावस्या को बहुत भीड़ आती है.
अगले दिन प्रातः 7 बजे नहा धोकर तैयार हो गए. उस दिन पूर्णमासी थी सुबह राम घाट पर पहुँच कर मन्दाकिनी गंगा के तट पर सत्यनारायण भगवान की कथा पढ़ी और आरती करी. इस बीच अनेक भिखारी मांगने के लिए कथा पढ़ते हुए अवरोध पैदा कर रहे थे. कथा भी पढने नहीं दे रहे थे. ज़यादातर भिखारी हृष्ट पुष्ट थे. कथा और आरती समाप्त करने के बाद यथा योग्य दान दक्छिना किया. तट के मंदिर तीन से चार मंजिल ईमारत जितने ऊँचे बने हुए हैं. वहां चढ़ कर दर्शन करने का साहस न हुआ तो नीचे से ही प्रणाम कर लिया. सभी 4-5 मंदिर के लिए अलग अलग चढ़ना और उतरना पड़ रहा था. यहाँ महादेव जी का मंदिर है कहा जा ता है की श्री राम जी ने महादेव जी की आज्ञा लेकर कामतानाथ में प्रवास किया था. इसके आलावा तुलसी दास मंदिर, भरत मिलाप मंदिर आदि हैं. यहाँ से इसके बाद हनुमान धारा जाने का सोच रखा था.
हमने देखा की मन्दाकिनी गंगा का पानी हरा हो चूका है. उसमे बहुत ही कम लोग नहाने की हिम्उमत कर रहे हैं. कुछ सिर्सफ जल अपने सर पर छिड़क कर धन्य हो रहे हैं. अनेको नाव यात्रियों को कुछ ही दूर तक घुमाने के लिए खडी हैं. वे प्रति व्यक्ति 200 से 250 रु की मांग कर रहे हैं. हमने 50 रु प्रति व्यक्ति लेने को कहा क्योंकि एक तो पानी बहुत ही गन्दा था और नाव वाले बहुत कम दूरी से वापस ला रहे थे. पानी में से दुर्गन्ध भी आ रही थी. इस तरफ प्रशासन को ध्यान देना चाहिए.
सड़क पर आकर हमने हनुमान धारा पर्वत पर हनुमान जी के मंदिर में दर्शन करने हेतु ऑटो से जाने की सोची. यहाँ से पूरा टेम्पो भरकर जाता है तो 10 रु सवारी लगता है. सुबह का समय था हनुमान धारा की रोप वे सुबह 10 बजे चलती है. साढ़े नो बज रहे थे हमने एक ई रिक्शा से बात की तो वह 40 रु में हम दोनों को फुल ई रिक्शा में ले चलने को तैयार हो गया. वहां पंहुंच कर रोप वे का टिकट खरीदा यह करीब 80 रु प्रति व्यक्ति था. नीचे से ही पुष्प और प्रसाद ले लिया. वैसे ऊपर भी दुकाने हैं. रोप वे का नज़ारा बहुत अच्छा लग रहा था साथ ही कुछ डर भी लग रहा था. वहां पंहुंच कर मंदिर के बाहर ही जूता चप्पल उतार कर हाथ धोकर मंदिर में हनुमान जी के दर्शन किये साथ ही वहां प्राकृतिक रूप से बह रहे जल का आचमन किया. यहाँ से उपर करीब 100 सीढ़ी चढ़ कर सीता रसोई मंदिर बताया गया. ऊंचाई बहुत ज्यादा थी अपनी उम्र 58 का ख़याल कर के एक बार तो उपर न जाने की सोची. फिर ये हुआ कि चलो आये हैं तो देख ही लें धीरे धीरे चढ़ेंगे. वहां दो दूकान पकोड़ी चाय की थी जिनमे आमने सामने होने से काफी प्रतियोगिता हो रही थी. दोनों में व्यक्ति और उनकी लडकियां समोसा पकोड़े बेचने को आतुर थीं. वहां हमने सीता रसोई देखने हेतु कदम बढ़ाये तो वहां पाया की लगभग 15 पंडित अपने अपने छोटे छोटे मंदिर बनाकर उसमे सीता जी की मूर्ती रख कर उसे ही सीता रसोई बता रहे हैं. आप एक जगह से गुजारेंगे तो वापस नहीं आ पायेंगे सारे पंडितों के मंदिरों में सांप नुमा रस्ते से होकर ही वापस आयेंगे. सभी पंडित चढ़ावा चढाने को कहेंगे. ये आपकी श्रद्धा पर है की आप कितना चढाते हैं. वहां से आकर कुछ पकोड़े खाकर हम बंदरों को चने और अन्य वस्तुएं खिलाकर नीचे वापस जूते पहनकर रोप वे से वापस आ गए. रोप वे बीचो बीच थोड़ी देर को रुकती है. ऐसा इसलिए होता है की उपर और नीचे से यात्रियों को चढ़ाया उतारा जा रहा होता है.
नीचे आकर हम ई रिक्शा देखने लगे एक मिला लेकिन वो 40 रु सवारी के हिसाब से वापसी का पैसा मांगने लगा. दो सवारी का राम घाट तक 80 रु. लेकिन हमने थोड़ी दूर मेन सड़क तक आकर एक ई रिक्शा मिल गया और 20 रु सवारी के हिसाब से राम घाट तक पंहुच गए रस्ते में हमने कामता नाथ मंदिर जाने की सोच ली. क्योंकि अभी 12 ही बजने वाले थे और आधा दिन बाकी था. उसी ई रिक्शे वाले से पूछा तो वही आगे 20-20 रु लेकर कामतानाथ मंदिर में छोड़ने को तैयार हो गया. उसी ई रिक्शे से हम कामतानाथ मंदिर के पास पंहुच गए वहां कुछ खरीददारी की और प्रसाद लेकर चप्पल प्रसाद वाले के पास उतार कर मंदिर गए 12 बजे श्री राम दरबार तो बंद कर दिया गया लेकिन कामतानाथ जी का मंदिर खुला था. हमने भीड़ भाड़ में दर्शन किये और बाहर आकर नारियल का प्रसाद तोड़ कर खाया. फिर लोग कहने लगे कामतानाथ पर्वत की परिक्रमा करके ये यात्रा पूर्ण होती है. परिक्रमा पथ की दूरी 4 किलोमीटर बतायी गयी. वहीँ पर बैठे एक बुज़ुर्ग ने कहा हम यहीं के हैं पहले लोग 4 कोस की परिक्रमा कहते थे. 4 कोस करीब 12 किलोमीटर हो जाता है.
खैर हमने परिक्रमा करने की सोची क्योंकि हमारे पास आज का दिन शाम तक का था अन्य कोई जगह नहीं जाना था. शाम को राम घाट की आरती देखनी थी और खाना खाकर अपने होटल में सो जाना था.
मैंने पत्नी के साथ कामता नाथ पर्वत की यात्रा आरम्भ की और कुछ दूर जाकर सुस्ताने लगे खाने का समय हो चला था कुछ खीरा लेखर खाया. वहीँ पर पत्नी की एक अन्य महिला से वार्तालाप हुआ तो पता चला की यहाँ समिति का भोजनालय है वहां पर 10 रु में भरपेट खाना मिल रहा है. वह स्थान सामने ही था जहां हम विश्राम कर रहे थे. वहां उन्होंने हमारा मोबाइल नं. पूछा और 10 रु लेकर थाली दे दी. यहाँ रोटी सब्जी चावल दाल मिल रहा था. हमने वह सब खाया. पास ही प्रसाधन गृह सरकारी बना हुआ था वहां पर लघुशंका करके हाथ धोकर हम आगे की यात्रा पर निकल चले. मोबाइल नं. कहीं भी देते समय सावधान रहना चाहिए क्यों की आपको अवांछित काल आनी शुरू हो जाती है. और दिन रात कभी भी आ सकती है. अब आप देखें. क्योंकि उसी दिन रात में 11-12 बजे कुछ अनजानी काल हमें आई थीं.
हमने कामतानाथ परिक्रमा शुरू की परिक्रमा मार्ग में सैकड़ों की संख्या में मंदिर मिलते जाते हैं. जो कि देखने और महसूस करने लायक है. आपको प्राचीन काल की सोच और रहन सहन का कुछ अंदाजा होने लगेगा. चूंकि हम 24 फरवरी २०२४ को वहां थे धूप अच्छी निकली थी और ठंडी हवा चल रही थी धीरे धीरे हम आगे बढ़ते गए कुछ मंदिरों में अन्दर जाकर दर्शन किये कुछ मंदिरों में बाहर से ही माथा टेका. मंदिरों की संख्या अत्यधिक होने से सारे मंदिरों में जाकर दर्शन करना संभव नहीं था. एक बड़ा सा मंदिर आया जिसमे पंडित जी बता रहे थे कि गोस्वामी तुलसी दास लिखित मूल रामचरित मानस के कुछ काण्ड यहाँ रखे हैं. आपके पास समय हो तो हम दिखाते हैं. हमारे पास समय की कमी होने से हमने नहीं देखा.
रस्ते में हमने देखा कुछ लोग बैंड बजाते हुए नाचते गाते जा रहे हैं. उनहोंने साइकिल पर बैंड का अपना पूरा इंतजाम कर रखा था.
कई मंदिरों को देखते हुए आगे लक्ष्मण टीला आया. कहा जाता है कि पूरे चौदह वर्ष के वनवास में श्री राम सीता की रखवाली लक्ष्मण जी करते थे और पूरे चौदह वर्ष सोये नहीं थे. लक्ष्मण टीले पर धनुष बाण के चिन्ह और पद चिन्ह बने हैं. जिसे देखने पैदल और रोप वे से जाते हैं. हम 75 रु प्रति व्यक्ति टिकट खरीदकर रोप वे से /उड़नखटोले से पहाड़ी पर गए और दर्शन करके आये. वहां चोटी पर एक बड़ा सा कुँवा भी है. जो की इस समय बंद कर रखा है. यहाँ पर बहुत कम लोग जा रहे थे वो भी पैदल मार्ग से. पैदल मार्ग में सीढ़ी और चढ़ाई दोनों मिला जुला रास्ता है.
वहां से आने पर फिर परिक्रमा पथ पर मंदिरों को देखते हुए आगे बढे. एक कामनाथ मंदिर और आया था. फिर एक महत्त्व पूर्ण मंदिर आया जहां बताते हैं भरत जी राम को मनाने आये थे. यहाँ पर मंदिर नीचे स्थान पर है सीढ़ी उतारकर वहां दर्शन किये यहाँ पर एक चट्टान ऐसी है जिसमे श्री राम और भरत जी के पद चिन्ह हैं. यह चट्टान मोम की तरह मुलायम थी बाद में कठोर हो गयी है. परिक्रमा मार्ग में जगह जगह पानी की सप्लाई है. कामतानाथ पर्वत आधा उत्तर प्रदेश में और आधा मध्य प्रदेश में आता है. अपने अपने इलाके के परिक्रमा पथ पर टीन शेड की छाया कर रखी है. सफाई हर समय होती रहती है. क्योंकि अनेक श्रद्धालु दंडवत परिक्रमा करते हैं. आगे और चलने पर एक और कामतानाथ मंदिर आया यहाँ दर्शन करके मंदिर के अन्दर से ही गली में आगे सब जा रहे थे हम भी उसी गली में चले गए. यहाँ पर मिठाइयाँ और खाने पीने का सामन बहुतायत में मिल रहा था. हमने भी पेडे खरीदे और खाए. चीनी भर भर के डाली होती है. खोया कम. आगे लोकल विक्रेता पूजा सामग्री पीतल के पूजा के बर्तन, भजन के लिए ढोलक छैना, आरती , ढपली, धार्मिक पुस्तकें आदि की दुकाने सजाये हुए थे. दाहिनी तरफ कामतानाथ पहाड़ी और बायीं तरफ दुकाने. दाहिनी तरफ तार लगाकर दुकाने लगाने हेतु रोका गया है. कामतानाथ पहाड़ी पर बड़े बड़े पेड़, पत्थर, बन्दर, चिड़ियाँ दिखाई दे रहे थे. मंदिर बाएं और दाहिने दोनों तरफ बने हुए हैं. मंदिरों की श्रंखला ख़त्म नहीं होती. लोगों की भक्ति भावना और सादगी देखने लायक है. परिक्रमा के अंत में कुछ मनमोहक मंदिर आये और चौथा कामतानाथ मंदिर आया. यहाँ पर बाहर से ही माथा टेका. क्योंकि चलते चलते 4 घंटे हो गये थे और हम पूरी तरह से थक गए थे. यात्रा के अंत में सरकारी आवास व विश्राम गृह भी मिला जिसमे हलचल नहीं थी. यह एक छोटा सा घर था. ज्यादातर लोगों को इसके बारे में पता नहीं है. और सरकारी व्यवस्था से सभी अच्छी तरह से वाकिफ होते है. परेशानी ज्यादा सुविधा कम.
परिक्रमा पूरी करके अपनी चप्पलें और सामान उठाकर फिर से प्रथम कामतानाथ मंदिर में बाहर से ही प्रणाम करके हम राम घाट को 20 रु सवारी के हिसाब से चल दिए. शाम को कुछ खीरा खाया और थोड़ी देर बाद बिस्कुट चाय पिया चाय 10 रु में राम घाट के पास मेन सड़क जाने वाली गली में अच्छी मिल गयी. समोसा पकोड़े भी थे. यथायोग्य खाकर राम घाट पंहुचे ही थे की नाव वाले पीछे पड़ गए घूम लीजिये हमने 50 रु सवारी बोला तुरंत तैयार हो गए. हम पति पत्नी और एड पिता पुत्री 4 लोगों को कुल 200 रु में लेकर उसने घुमाया और वापस ले आया. यह ज्यादा लम्बा रास्ता नहीं है घुमाने को. शाम हो रही थी नाव में डिस्को लाईट जला दी थी जो कि देखने में अच्छी लग रही थी. घूमकर हम लगभग 5:15 पर वापस आकर नदी के तट पर बैठ गए. भिखारी मांगने के लिए घेरने लगे.
यहाँ पर मैं एक बात कहना चाहूंगा की जैसे हरद्वार में घाट पर भिखारियों का आना मना है वैसे यहाँ भी राम घाट/तुलसी घाट पर भिखारियों का आना बंद कर देना चाहिए ताकि यात्री शान्ति से वहां समय बिता सके और आरती का आनंद ले सके.
लगभग 6 बजे मन्दाकिनी गंगा की आरती शुरू हो गयी यहाँ पर भी हरद्वार और काशी की तरह 3 से 5 पंडित मिलकर अपनी वेशभूषा पहनकर आरती करते हैं. आरती समाप्त होने पर में सड़क पर आकर हमने अन्नपूर्णा होटल में खाना खाया. होटल में खाना 150 रु थाली में भरपेट खाइए. हम पति पत्नी कम ही खा पाते थे. सो हमने फिक्स थाली मंगाई और दोनों ने शेयर करके खायी जो कि पहले ही विक्रेता से बात कर ली थी. जरूरत पड़ने पर अतिरिक्त रोटी पैसे देकर माँगा ली.
रात को अपने होटल में सो गए अगले दिन चार धाम यात्रा करने की सोची. इसमें बहुत जल्दी करने पर भी आधा दिन लग जाता है. हमने सुबह 8 बजे राम घाट से टेम्पो में बैठ गए कई लोग और भी बैठे थे. 100 रु सवारी ले रहे थे. जिसमें जानकी कुंड अनुसूया मंदिर, स्फटिक शिला. गुप्त गोदावरी, शामिल हैं.
टेम्पो पहले जानकी कुंड ले गया. रास्ते में श्री रामभद्राचार्य जी का आश्रम उनके द्वारा स्थापित अंधों का पढने का स्कूल, उन्हीं के द्वारा स्थापित विश्व प्रसिद्द नेत्र चिकित्सालय भी आया. उनके द्वारा स्थापित गौशाला भी आई सब उसी रस्ते में है. आगे बढ़ने पर सरकारी रामायण भवन व संग्रहालय आया जिसमे श्री राम जी के जीवन चरित्र की झांकियों की सुन्दर मूर्तियाँ हैं. मोबाइल अंदर नहीं ले जाने दे रहे थे. टेम्पो वाले ने 15 मिनट का समय जानकी कुण्ड के लिए दिया था 15 मिनट रामायण संग्रहालय के लिए दिया. इस संग्रहालय की प्रवेश फीस 25 रुपये थी.
स्फटिक शिला के भी दर्शन किये. यह नदी के किनारे एक चिकनी बड़ी सी शिला है यहाँ पर श्री राम जी सीता जी बैठी थी. श्री राम जी ने पहली बार वनवास में सीता जी के लिए पुष्पों से श्रंगार किया था. तभी इंद्र का लड़का कौआ बनकर वहां पर सीता जी के पैर में चोंच मार दिया जिससे सीता जी के खून निकल आया. श्री राम जी को क्रोध आ गया और उनहोंने तीर मारा. इंद्र का लड़का तीनों लोकों में भागा न किसी ने शरण दी, न किसी ने बचाया तो राम जी की शरण में आ गया लेकिन श्री राम जी का तीर व्यर्थ नहीं जाना था लेकिन श्री राम जी ने उसका वेग कम कर दिया जो उसकी एक आँख में लगा. कहा जाता है कि तब से कौआ एक बार में एक आँख से देख पाता है.
उसके बाद टेम्पो वाले ने टेम्पो गुप्त गोदावरी मंदिर के लिए भगाना शुरू कर दिया. डर ये लग रहा था की कहीं कोई गड्ढा न आ जाय वैसे तो रास्ता खाली था मगर कुछ साइकिल मोटर साईकिल वाले चल रहे थे कहीं लड़ न जाएँ. सरपट भागते टेम्पो से आखिर किसी गाँव के रस्ते में एक बुढा आदमी और एक लड़का साईकिल पर आरहे थे अचानक मुड़ने लगे और टेम्पो वाले ने तेजी से ब्रेक मारा तब सब यात्री सकपका गए और रुकते रुकते भी बुढा को ठोकर लग गयी और वह गिर गया. बाद में टेम्पो ड्राइवर ने और उसके साथ चल रहे बालक ने उसे उठाया और सड़क के किनारे बैठाकर टेम्पो वाला चल दिया. फिर से सरपट भागमभाग. ये दिन में दो चक्कर लगाने के फेर में या यात्रियों की ट्रेन की जल्दी होने की वजह से अंधाधुंध भगाते हैं. बहुत संभलकर बैठना चाहिए.
गुप्त गोदावरी में काफी पहले उतार देते हैं. अन्दर करीब 1 किमी चलना पड़ता है. अन्दर भीड़ भी बहुत होती है. हमें बोला गया कि 1 घंटे में वापस आइये. हमने वहां से ई रिक्शा करके टिकट काउन्टर तक गए चप्पल रखने के लिए या तो प्रसाद वालों के पास रखे या एक लड़का 5 रु जोड़ी चप्पल के हिसाब से अपने पास पीपों में सबकी चप्पले अलग अलग पीपों में रख रहा था. उसके पास चप्पलें रखकर हमने 20 रु प्रति व्यक्ति टिकट लेकर लाइन में लग गए.
यहाँ पर पहाड़ी पर ऊपर सीढ़ी से चढ़कर जाना था जाने और आने का गुफा का रास्ता एक ही है और बहुत संकरा है. एक बार में एक व्यक्ति के आगे बढ़ने का रास्ता है. अत: जो लोग करीब 150 लोग अन्दर गए हैं जबतक वह वापस न आ जाएँ नए लोग अंदर नहीं जाने दिए जाते हैं. अत: वहां पर भीड़ बहुत थी. खैर आधे घंटे इंतजार करने पर हम भी गुप्त गोदावरी गुफा में चले गए. जाने के रस्ते से एक एक व्यक्ति करके अन्दर जाते हैं ज्यादा जगह ही नहीं है. अन्दर बड़ी सी गुफा है. वहां राम दरबार और कुछ अन्य मूर्तियाँ हैं तथा एक कुंड में जल भरा है जो की गुप्त गोदावरी का पहाड़ों के अन्दर से ही पानी आ रहा है. इस गुफा से निकलकर एक दूसरी गुप्त गोदावरी की गुफा है इसमें पूरी गुफा में पानी है. आपके पैरों से लेकर कभी कभी घुटनों तक पानी रहता है. इस जल भरी गुफा में थोड़ी दूर जाकर वापस निकल आये क्यों कि टेम्पो वाले का समय की पाबंदी याद आ गयी. वर्ना वह अगर छोड़ कर चला गया तो कैसे वापस जायेंगे. सब बुकिंग के टेम्पो आते हैं वहां. हमारे साथ के लोग भी वापस आने लगे. तब दोपहर हो चुकी थी हमें भूख भी लग रही थी सो हमने टेम्पो के पास पंहुच कर उससे बोला खाना खाकर चलेंगे सो वो भी राजी होगया. १००रु थाली का खाना था. यहाँ भी हमने शेयरिंग में पति पत्नी ने खाया ऊपर से और रोटी माँगा ली.
वहां पर दर्द का तेल मिलता है. हर दूकान पर काला तेल लाल तेल. चूंकि हमारे पैरों में दर्द हो रहा था सो काला तेल छोटी शीशी 50 रु की ले ली.
फिर यहाँ से सती अनुसूया मंदिर की तरफ वापस हो लिए. काफी दूर उसी सड़क पर वापिस चलकर फिर बीच में दाहिने मोड़ आता है वहां लगभग 4 किमी जंगल पहाड़ी के अन्दर टेम्पो से ऊंची नीची लहरदार सड़कों से होते हुए जाकर सती अनुसूया मंदिर आता है. यहाँ बहुत भीड़ नज़र आ रही थी और गर्मी भी काफी लग रही थी जबकि २०२४ फरवरी 25 तारीख थी. जगह जगह शीतल पेय पदार्थ मिठाई और महिलाओं और बच्चों के सामान, खिलौने और पूजा अर्चन सामग्री व धार्मिक पुस्तकें, रोग दूर करने की जड़ी और यंत्र मिल रहे थे. सड़क से मंदिर तक लगभग 1 किमी पैदल चलना था सड़क के दोनों तरफ छोटी छोटी दुकानों की कतार थी तथा बायीं तरफ नदी बह रही थी. जिसमे एक छोटा सा बाँध बनाया गया था जिसमे लोग स्नान कर रहे थे. पानी कुछ साफ़ नहीं लग रहा था. रस्ते में दत्तात्रेय का छोटा मंदिर दिखा. बाहर से दर्शन करते हुए लोग आगे बढ़ रहे थे. हम भी आगे बढ़ रहे थे. अंत में सती अनुसूया का मंदिर आया. यह एक विशाल मंदिर है. इसमें हमारे देवी देवताओं उनकी लीलाओं की रोचक सुन्दर मूर्तियाँ स्थापित हैं. साथ ही इस स्थान पर तपस्या करने वाले संतों की जो वहां तपस्या करते करते मंदिर बनाते बनाते गुजर गए हैं उनकी भी मूर्तियाँ इस मंदिर में हैं. बहुत बड़ा कई मंजिल का मंदिर है. हमें पूरा मंदिर देखने के लिए आधे घंटे का समय दिया गया था. 15 मिनट तो मंदिर तक पंहुचने में लग गए. बाकी 15-20 मिनट में फटाफट दर्शन किये. समय कम होने से ठीक से देख भी नहीं पाए. मंदिर में फोटो खींचना मना है जगह जगह लिखा हुआ है. परन्तु लोग कहाँ मानने वाले. हमने भी कुछ फोटो खींचे. फिर मंदिर के बाहर आकर कुछ सेल्फी ली और वापस चल दिए. इतने में देखा कीहमारा टेम्पो वाला अपनी सवारियों को ढूंढ रहा था. हम खीरा लेकर खाते हुए टेम्पो में जा बैठे. एक परिवार का आना बाकी था बाकी लोग आ गए थे. उनके आते ही टेम्पो सरपट भागने लगा और करीब 8 बजे के सुबह के निकले हम 1:40 पर राम घाट के पास तक पंहुंच गए रस्ते में हमें हमारा होटल दिखा हम वहीं उतर गए. और होटल में आकर आराम से सो गए.
अगले दिन 10 बजे चेक आउट था सो हम अपना नहा धोकर रामघाट जाकर खा पीकर वापस आ गए और होटल के एक कमरे में सामान रख कर वहीं बैठ गए होटल लगभग खाली था उसका केयर टेकर भी कहीं चला गया था जो कि कहता था मैं 24 घंटे यहीं रहता हूँ. दोपर से शाम 4 बजे तक वहां दो लोग आये जिन्होंने वह पारवती होटल बुक कराया था. किसी के न मिलने पर और फोन से भी बुलाने पर कोई न आने पर एक नवयुवक पति पत्नी तो कहीं और रहने चले गए. बाद में एक प्रौढ़ पति पत्नी उसी होटल में आये और हम चूंकि वहीँ अन्दर वेटिंग चेयर पर बैठे थे हमसे पूछताछ करने लगे तो हमने कहा की आप उनको फोन करो यहाँ कोई नहीं है. फिर होटल मालिक से बात करने पर उसने किसी को भेजा और उनको एक कमरा खोलकर दिया और चला गया. खाली होटल में वह ऊपर के कमरे में चले गए और फिर सर्दी के दिन होने से गीजर का पानी गर्म न आने से वह हमसे पूछने लगे की कैसे पानी गर्म आएगा. हमने कहा की इनका गीजर का कण्ट्रोल इन्हीं के पास है. जब वह बटन खोलेंगे तब गीजर में लाइट आएगी और पानी गर्म होगा. इस तरह की समस्या भी आ सकती है.
खैर हमारी 5:30 की ट्रेन खजुराहो की थी सो हम अपना सामान लेकर 4 बजे होटल से चल दिए और सड़क पर आकर एक टेम्पो में बैठ कर रामघाट आये फिर रामघाट से अगला टेम्पो पकड़कर स्टेशन चल दिए. स्टेशन पहुचकर पता चला कि हमारी ट्रेन जो चित्रकूट से ही चलने वाली है 2 घंटे देरी से चलेगी. हम वेटिंग रूम में इंतज़ार करने लगे. यहाँ पर एक नौजवान भिक्षुणी भी बैठी थी उनसे वार्ता होने लगी कई लोग उनसे बात कर रहे थे. आध्यात्म की बातें चल रही थी. हमारे पूछने पर उन्होंने बताया कि वह अपने गुरु के कहने से वृन्दावन से चली हैं यहाँ के कई स्थानों के दर्शन करके अब आगे जा रही हैं. कहाँ जा रहीं हैं यह गुप्त रखने को कहा गया है. वह कहती हैं कि हमारे पास कोई पैसा नहीं है. कोई टिकट ले देता है. कोई चाय पिला देता है. कोई खाना खिला देता है. वहां बैठी कुछ औरतों ने उन्हें चाय पिलाई किसी ने बिस्कुट पकौड़ा खिलाया. और देर तक बातचीत चलती रही. 2 घंटे बाद उसी ट्रेन से उन्हें भी आगे जाना था जिसमे हम जाने वाले थे.
तभी वहां बैठे एक प्रौढ़ व्यक्ति को बेहोशी कंपकंपी आई और वह कुछ आवाज करके निढाल हो गया. लोग कहने लगे इन्हें तुरंत भर्ती कराओ. एम्बुलेंस बुलाओ. मैं और एक दो लोग और स्टेशन मास्टर के पास गए और बात बतायी तो उन्होंने कहा की हम एम्बुलेंस बुलवा सकते हैं. डॉक्टर यहाँ कोई नहीं है. उस आदमी की औरत और बच्चे भी साथ थे. उनहोंने कुछ लोगों के कहने पर वेटिंग रूम से बाहर उसको फ्रेश हवा में ले गए और पानी पिलाया तो होश आया. वे अस्पताल जाने को तैयार नहीं थे क्योंकि ट्रेन आने वाली थी ट्रेन छूट जाती.
ट्रेन आने पर हम अपनी सीट पर बैठ गए और लगभग 10 बजे रात के बाद हमारी ट्रेन खजुराहो पंहुची. आगे का विवरण अगली पोस्ट में.